सुप्रीम कोर्ट की नई स्थायी जज बनने जा रही है जस्टिस एलसी विक्टोरिया गौरी, जाने क्या है उनके राजनितिक संबंध

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भारत की न्यायपालिका में एक नया और महत्वपूर्ण नाम उभरकर सामने आया है – जस्टिस एलसी विक्टोरिया गौरी। वह उन पांच जजों में शामिल हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा मद्रास हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में स्थायी जज के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की गई है। लेकिन उनकी यह नियुक्ति सिर्फ उनकी कानूनी काबिलियत के कारण ही चर्चा में नहीं आई, बल्कि उनके राजनीतिक अतीत और विवादास्पद बयानों की वजह से भी कई सवाल उठे हैं।

शिक्षा और कानूनी करियर

जस्टिस विक्टोरिया गौरी ने मदुरै के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से बैचलर ऑफ लॉ (एलएलबी) की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने मदर टेरेसा महिला विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (पीजी) की पढ़ाई पूरी की। 1995 में उन्होंने वकील के रूप में एनरोलमेंट किया और 1997 में कन्याकुमारी में अपनी खुद की कानून फर्म, वी-विक्ट्री लीगल एसोसिएट्स की स्थापना की। उनके 21 वर्षों के कानूनी अनुभव में कई महत्वपूर्ण मुकदमों में उनकी भूमिका सराहनीय रही है। एक वकील के तौर पर उनकी कानूनी यात्रा एक प्रतिष्ठित और सफल रही है, जो उनकी नियुक्ति के पीछे का प्रमुख कारण माना जा रहा है।

राजनीतिक संबंध और विवाद

जस्टिस गौरी का राजनीतिक करियर भी उनकी पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनके कॉलेज के दिनों से ही उनका जुड़ाव भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से रहा है। 2020 में सहायक सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) बनने के बाद उन्होंने बीजेपी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया, लेकिन इसके बावजूद उनके राजनीतिक संबंधों को लेकर सवाल उठाए गए। वकीलों और आलोचकों का कहना है कि उनकी विचारधारा और राजनीतिक पृष्ठभूमि उन्हें निष्पक्ष न्याय करने में बाधा डाल सकती है।

जस्टिस एलसी विक्टोरिया गौरी

2023 में, जब उन्हें मद्रास हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया जा रहा था, तब 21 वकीलों के एक समूह ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश का विरोध किया। इन वकीलों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक पत्र लिखकर उनकी नियुक्ति को रद्द करने की मांग की थी। वकीलों का आरोप था कि जस्टिस गौरी का बीजेपी से जुड़ाव और उनके कुछ विवादास्पद बयान, खासकर धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ, उन्हें एक जज के रूप में अनुचित बनाते हैं। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, उनके पुराने इंटरव्यू और भाषणों में उन्होंने ईसाई मिशनरियों और इस्लामी आतंकवाद पर विवादास्पद टिप्पणी की थी, जिसे वकीलों ने उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाने का कारण माना​।

विवादास्पद बयान

जस्टिस गौरी के कुछ पुराने इंटरव्यूज़ और भाषण, जो उन्होंने विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर दिए थे, आज भी विवादों का कारण बने हुए हैं। एक यूट्यूब इंटरव्यू में, जो 2018 में आयोजित हुआ था, उन्होंने इस्लामी आतंकवाद को "हरा आतंक" और ईसाई मिशनरियों को "सफेद आतंक" कहकर संबोधित किया था। साथ ही, उन्होंने धर्म परिवर्तन और 'लव जिहाद' के मुद्दे पर भी कड़े शब्दों में अपनी राय रखी थी। इस तरह की टिप्पणियों ने न केवल उनकी व्यक्तिगत विचारधारा को उजागर किया, बल्कि उनके न्यायाधीश बनने की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए गए​।

वकीलों ने यह भी आरोप लगाया कि जस्टिस गौरी का धार्मिक और राजनीतिक विचारों की कट्टरता उन्हें जज के रूप में उपयुक्त नहीं बनाती। इन विवादों के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनके अनुभव और कानूनी ज्ञान को देखते हुए उन्हें स्थायी जज बनाने की सिफारिश की है।

न्यायपालिका में महिला जजों की भूमिका

जस्टिस गौरी के साथ-साथ दो अन्य महिला जज, जस्टिस रामचंद्रन कलैमथी और जस्टिस के. गोविंदराजन थिलकावडी, को भी सुप्रीम कोर्ट में स्थायी जज के रूप में नियुक्त किया गया है। यह नियुक्ति भारतीय न्यायपालिका में महिलाओं की बढ़ती भूमिका और उनकी सशक्तिकरण का प्रतीक है। हालांकि, जस्टिस गौरी की नियुक्ति पर उठे विवादों ने इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया है।

निष्कर्ष

जस्टिस एलसी विक्टोरिया गौरी की सुप्रीम कोर्ट में स्थायी जज के रूप में नियुक्ति निस्संदेह एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह विवादों से घिरी रही है। उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि और विवादास्पद बयानों ने उनके न्यायिक करियर पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। फिर भी, उनके कानूनी अनुभव और योग्यता को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें एक स्थायी जज के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लिया है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि जस्टिस गौरी न्यायपालिका में अपने नए पद पर किस प्रकार से कार्य करती हैं और क्या वह अपनी पिछली विवादास्पद छवि से उबरकर निष्पक्ष और न्यायसंगत निर्णय लेने में सफल होंगी। भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका की निष्पक्षता और स्वतंत्रता अत्यधिक महत्वपूर्ण है, और जस्टिस गौरी के लिए यह अवसर अपनी न्यायिक क्षमता को साबित करने का समय है।

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