अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा, दिल्ली की राजनीति में नया मोड़ या सियासी दांव?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 15 सितंबर, 2024 को एक बड़ा राजनीतिक बयान देते हुए कहा कि वह दो दिन बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देंगे। यह ऐलान तब किया गया जब आबकारी नीति मामले में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी। उनका यह बयान पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के सामने दिया गया, जो राजनीतिक गलियारों में तेजी से चर्चा का विषय बन गया।
इस्तीफा देने की घोषणा- जनता की अदालत का सहारा
अरविंद केजरीवाल ने अपने संबोधन में यह कहा कि वह तब तक मुख्यमंत्री पद पर नहीं बैठेंगे जब तक जनता यह फैसला नहीं सुना देती कि वह ईमानदार हैं। केजरीवाल ने मंच से यह बात बार-बार दोहराई कि जनता का फैसला ही उनके राजनीतिक भविष्य का निर्धारण करेगा। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से अपील की कि यदि जनता को लगता है कि वह (केजरीवाल) भ्रष्टाचार से मुक्त हैं, तो उन्हें आगामी चुनाव में समर्थन देना चाहिए।
केजरीवाल का यह बयान यह भी दर्शाता है कि वह अपनी ईमानदारी और स्वच्छ छवि पर जनता का विश्वास प्राप्त करना चाहते हैं, जो उनके राजनीतिक कैरियर का एक महत्वपूर्ण आधार रहा है। उन्होंने कहा, "जब तक जनता का फैसला नहीं आता, मैं सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा।"
आबकारी नीति घोटाले का साया
केजरीवाल के इस फैसले के पीछे की मुख्य वजह आबकारी नीति से जुड़ा घोटाला है, जिसमें उनका और उनकी सरकार का नाम जुड़ा हुआ है। दिल्ली की आबकारी नीति 2021-22 के लागू होने के बाद उस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। इस मामले में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को भी गिरफ्तार किया गया था, और यह मामला केजरीवाल सरकार के लिए एक बड़ा राजनीतिक संकट बन गया था।
सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद, केजरीवाल ने यह साफ कर दिया कि वह बिना किसी धांधली या आरोप के राजनीति में बने रहना चाहते हैं, और इसके लिए वह जनता की अदालत का सहारा ले रहे हैं।
तत्काल चुनाव की मांग
केजरीवाल ने अपने बयान में यह भी कहा कि वह चाहते हैं कि दिल्ली में तुरंत चुनाव कराए जाएं। उन्होंने केंद्रीय चुनाव आयोग से मांग की कि दिल्ली विधानसभा चुनाव नवंबर में महाराष्ट्र के साथ कराए जाएं। इसके साथ ही उन्होंने एक नए मुख्यमंत्री के चुनाव की भी बात कही, जिसे अगले 1-2 दिन में पूरा किया जाए। इससे यह स्पष्ट होता है कि केजरीवाल पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन के संकेत दे रहे हैं, लेकिन यह परिवर्तन किस दिशा में जाएगा, यह आने वाले समय में ही स्पष्ट हो पाएगा।
पार्टी को तोड़ने का प्रयास?
केजरीवाल ने अपने इस्तीफे को लेकर हुए देरी पर भी सफाई दी। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ जो षड्यंत्र रचे गए हैं, उनका उद्देश्य सिर्फ उन्हें नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी (AAP) को भी तोड़ना है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने पिछले 10 सालों में AAP सरकार को कमजोर करने की पूरी कोशिश की है। उन्होंने कहा, "इनका फॉर्मूला है कि पार्टी तोड़ दो, विधायक तोड़ दो, ईडी छापेमारी कर दो।"
केजरीवाल ने यह भी कहा कि अगर उन्होंने पहले इस्तीफा दे दिया होता, तो यह केंद्र के लिए AAP को पूरी तरह से खत्म करने का एक रास्ता बन जाता। उन्होंने देश के अन्य मुख्यमंत्रियों से भी अपील की कि अगर उन पर भी इसी तरह के आरोप लगाए जाते हैं, तो उन्हें भी अपने पद से इस्तीफा नहीं देना चाहिए।
मनीष सिसोदिया और अन्य नेताओं की भूमिका
इस दौरान केजरीवाल ने अपने करीबी नेता मनीष सिसोदिया का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि सिसोदिया भी तभी अपने पदों (डिप्टी सीएम और शिक्षा मंत्री) को स्वीकार करेंगे जब जनता से उन्हें समर्थन प्राप्त होगा। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि केजरीवाल न केवल अपनी स्थिति को चुनौतीपूर्ण मान रहे हैं, बल्कि उनकी पूरी पार्टी इस सियासी संकट से जूझ रही है। उन्होंने सिसोदिया के साथ-साथ सतेंद्र जैन और अमानतुल्ला खान के जल्द बाहर आने की उम्मीद भी जताई।
केजरीवाल ने अपने जेल में बिताए समय का भी जिक्र किया और कहा कि उन्होंने वहां कई किताबें पढ़ीं, जिनमें रामायण, गीता और भगत सिंह की जेल डायरी शामिल थी। यह बयान न केवल उनके व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करता है, बल्कि यह भी बताता है कि उनके लिए यह समय आत्मनिरीक्षण का था। उन्होंने कहा कि जेल में रहकर उन्हें भारतीय राजनीति और अपनी पार्टी की भूमिका पर गहराई से सोचने का मौका मिला।
क्या यह सियासी दांव सफल होगा?
अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा देने का ऐलान, चुनाव की मांग, और जनता की अदालत से समर्थन प्राप्त करने की कोशिश, सब एक बड़े सियासी दांव का हिस्सा हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जनता उनके इस फैसले को सकारात्मक रूप से लेगी और उन्हें दोबारा भारी जनादेश के साथ मुख्यमंत्री पद पर बिठाएगी या नहीं।
फरवरी में होने वाले चुनावों पर सभी की नजरें टिकी हैं, और यह चुनाव न केवल AAP के भविष्य का फैसला करेगा, बल्कि यह भी बताएगा कि भारतीय राजनीति में ईमानदारी की छवि कितनी प्रभावी है। केजरीवाल की यह घोषणा जहां उनके समर्थकों के लिए उम्मीद की किरण है, वहीं उनके विरोधियों के लिए एक नई चुनौती।
अब यह आने वाला समय बताएगा कि केजरीवाल का यह सियासी दांव क्या रंग लाएगा और क्या जनता उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाएगी।
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